Himachal News: मंडी-कुल्लू की सीमा पर झीड़ी के समीप मकराहड़ में देवता मार्कंडेय ऋषि थरास ने शुक्रवार को हजारों देवलुओं व भक्तों के साथ ब्यास व गोमती नदी के तट पर पवित्र स्नान किया। यहां देवता का यह पर्व प्राकट्य दिवस के रूप में मनाया गया और धरती माता का दूध पीने की रस्में यहां निभाई गई।
मान्यता है कि यहां देवता का मोहरा जमीन में खेत जुताई के वक्त मिला था जो आज भी मौजूद है। यहां इस दिन पवित्र स्नान से चर्मरोग से छुटकारा मिलता है।
शैतानों को पत्थर मारने की परम्परा भी कायम है
यहां शैतानों को पत्थर मारने की परम्परा भी कायम है जिसे स्नान से पूर्व सांकेतिक रूप से निभाया गया। सुबह 11 बजे देवता थरास गांव से देवलुओं के साथ अपने प्राचीन मंदिर मकराहड़ पहुंचे और यहां पूजा के बाद देवता के कारकून उल्टे पैर ब्यास और गोमती नदी के तट पर स्थित संगम की ओर देवता के आगे चले।
लोगों ने देवता के साथ ब्यास नदी में स्नान किया और बोतलों में पानी भर घर ले गए
इस दौरान हजारों लोगों ने देवता के साथ ब्यास नदी में स्नान किया और बोतलों में पानी भर घर ले गए। इसके बाद देवता उस खेत में जा पहुंचा जहां एक महिला को सदियों पूर्व देवता का मोहरा मिला था। यहां पहुंचते ही देवता धरती मां के आंचल से लिपट गए और तीन बार धरती मां का स्पर्श किया। बार-बार देवरथ वापस आता रहा और धरती मां का स्तनपान किया।
धरती फट जाती है और बालक रूपी ऋषि को अपनी गोद में लेकर दुलार कर दूध पिलाती है
मान्यता है कि इस वक्त धरती फट जाती है और बालक रूपी ऋषि को अपनी गोद में लेकर दुलार कर दूध पिलाती है। इस दौरान हजारों लोग इस एतिहासिक पल के गवाह बने। मंदिर पहुंचते ही देवता के गुर ने भविष्यवाणी कर सुख शांति का संदेश दिया। देवता के कारदार जीवन प्रकाश ने मंडी-कुल्लू सराज से आए देवताओं के प्रमुख कारकूनों का स्वागत किया।
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