नई दिल्ली, 5 अगस्त 2025: भारत के उर्वरक क्षेत्र में बदलाव की ज़रूरत अब सिर्फ़ किसानों और उद्योग की आवाज़ नहीं रही, बल्कि नीति निर्माण के केंद्र तक पहुँचने लगी है। इंडियन माइक्रो फर्टिलाइजर्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (IMMA) ने इसी दिशा में एक अहम पहल करते हुए दिल्ली के इंडिया हैबिटैट सेंटर में B2G (बिजनेस-टू-गवर्नमेंट) राउंडटेबल का आयोजन किया। इसका उद्देश्य था उद्योग की प्रमुख समस्याओं को सरकार के समक्ष प्रस्तुत कर व्यावहारिक समाधान सुझाना।
इस राउंडटेबल की थीम थी – “Innovate, Regulate, Elevate: Shaping India’s Fertilizer Future”, जिसमें नीति निर्माताओं, वैज्ञानिकों, कानूनी विशेषज्ञों, और प्रमुख उर्वरक संगठनों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। चर्चा में मुख्य रूप से छह मुद्दे सामने आए – जिनमें लाइसेंसिंग प्रक्रिया में सुधार, Biostimulants पर नई नीति, नकली उर्वरकों की चुनौती, निर्यात प्रतिबंध, और गैर-सब्सिडी उत्पादों पर कठोर दंड के प्रावधान शामिल रहे।
One Nation, One Licence: उद्योग की सबसे बड़ी मांग
IMMA के अध्यक्ष डॉ. राहुल मीरचंदानी ने स्पष्ट कहा कि उर्वरक कंपनियों को हर राज्य में अलग-अलग लाइसेंस की आवश्यकता होने से समय, श्रम और संसाधनों की बर्बादी होती है। उन्होंने एक ऐसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का सुझाव दिया जहां कंपनियां एक बार दस्तावेज़ अपलोड करें और उसे सभी राज्य विभाग एक्सेस कर सकें।
यह विचार न केवल IMMA बल्कि SFIA, BIPA, BASAI और FAI जैसे संगठनों को भी व्यावहारिक और तात्कालिक समाधान के रूप में स्वीकार्य लगा। इसे लेकर एक श्वेतपत्र तैयार किया जा रहा है जिसे मंत्रालय को सौंपा जाएगा।

Biostimulants नियमों को लेकर भ्रम, सुधार की ज़रूरत
16 जून 2025 से लागू हुए Biostimulants नियमों को लेकर उद्योग जगत में काफी भ्रम और अव्यवस्था है। कई उत्पादक कंपनियां यह नहीं समझ पा रही हैं कि अब वे अपने पुराने स्टॉक का क्या करें। चर्चा में यह बात सामने आई कि इन नियमों की वजह से किसान और व्यापारी दोनों परेशान हो रहे हैं।
CFQCTI के निदेशक डॉ. श्याम बाबू ने जानकारी दी कि राज्य स्तरीय प्रयोगशालाओं और वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है, लेकिन इसमें समय लगेगा।
इसीलिए उद्योग की ओर से दो मुख्य सुझाव रखे गए –
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16 जून से पहले तैयार उत्पादों को उनकी एक्सपायरी डेट तक बाजार में बेचने की अनुमति दी जाए।
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जब तक सभी राज्य प्रयोगशालाएं पूरी तरह तैयार नहीं हो जातीं, तब तक NABL प्रमाणित निजी लैब्स को मान्यता दी जाए।
निर्यात नीति में बदलाव की ज़रूरत
भारत के पास उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरक उत्पाद हैं, जो वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं। लेकिन इनका निर्यात ‘Restricted List’ में होने के कारण रोका जा रहा है। डॉ. मीरचंदानी ने कहा, “हमारे पास तकनीक है, गुणवत्ता है और मूल्य में भी हम सक्षम हैं, तो फिर हमारे उत्पादों को विदेशों में भेजने से क्यों रोका जाए?”
उन्होंने सुझाव दिया कि गैर-सब्सिडी उत्पादों को निर्यात सूची से हटाया जाए ताकि भारत एक ‘फर्टिलाइज़र हब’ बन सके और ‘Make in India’ अभियान को वास्तविक बढ़ावा मिल सके।
नकली उर्वरकों पर स्वैच्छिक प्रयासों की सराहना
IMMA के सदस्यों द्वारा नकली उर्वरकों के खिलाफ चलाए जा रहे स्वैच्छिक प्रयासों की राउंडटेबल में सराहना की गई। ICAR-Pusa के डॉ. देबाशीष मंडल और CFQCTI के डॉ. श्याम बाबू ने सुझाव दिया कि किसानों के लिए ऐसी टेस्टिंग किट्स उपलब्ध कराई जाएं जिससे वे खुद उत्पाद की गुणवत्ता जांच सकें।
Essential Commodities Act पर पुनर्विचार की मांग
पूर्व विधिक अधिकारी एच.पी. सिंह ने कहा कि गैर-सब्सिडी उत्पादों को भी उसी कठोर कानून के तहत लाना, जैसे कि Essential Commodities Act, अनुचित है। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे मामलों में सुधारात्मक जुर्माने (compounding provisions) की व्यवस्था होनी चाहिए न कि सीधे अपराध मानकर सजा दी जाए। इसपर मंत्रालय के अधिकारियों ने सहमति जताई और कहा कि इस पर अंतर-मंत्रालयी कार्रवाई शुरू की जाएगी।
IMMA की नीति भागीदारी की सोच
बैठक के अंत में IMMA के पूर्व अध्यक्ष श्री वैभव काशिकर ने कहा, “यह संवाद हमारी ‘Policy Through Partnership’ की भावना को और मजबूत करता है। अब हम इन विचारों को ठोस प्रस्तावों में बदलकर मंत्रालयों के पास ले जाएंगे।”
मुख्य कार्य योजनाएं
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One Nation, One Licence पर श्वेत पत्र
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नकली उर्वरकों के खिलाफ टूलकिट का प्रस्ताव
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Biostimulants और FCO पर संयुक्त ज्ञापन
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Essential Commodities Act में सुधार हेतु कानूनी मसौदा
यह राउंडटेबल IMMA और भागीदार संगठनों की उस गंभीर कोशिश का हिस्सा है, जो भारत की खाद नीति को जमीनी हकीकत और वैश्विक मानकों के अनुरूप ढालने की दिशा में लगातार काम कर रहे हैं।







