अब तक माना जाता था कि स्ट्रॉबेरी केवल ठन्डे पहाड़ी क्षेत्रों में ही पैदा हो सकती है, लेकिन आधुनिक कृषि तकनीकों और उन्नत किस्मों की बदौलत अब इस मीठे और पोषक फल को मैदानी इलाकों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है। इस बदलाव से न केवल खेती का स्वरूप बदल रहा है, बल्कि यह किसानों की आमदनी बढ़ाने का भी एक नया और लाभकारी अवसर भी बनकर सामने आया है।
स्ट्रॉबेरी विटामिन C, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होती है, जिससे यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी बन जाता है। इसी के साथ अपने स्वाद, रंग और सुगंध के चलते यह बाजार में अत्यधिक मांग वाला फल बन जाता है। यही कारण है कि स्ट्रॉबेरी की खेती किसानों के लिए अच्छा लाभ का अवसर साबित हो सकती है। किसानों को यह समझना है कि इसकी खेती कब, कहां और कैसे करनी चाहिए।
आपको बता दें स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए सितंबर से नवंबर का समय सबसे अच्छा होता है, क्योंकि मौसम ठंडा होने की वजह से पौधों की जड़ें तेजी से जमती हैं और अच्छी बढ़त होती है।
अब मैदानों में भी संभव है स्ट्रॉबेरी की खेती
अब तक स्ट्रॉबेरी की खेती केवल हिमाचल, उत्तराखंड और कश्मीर जैसे ठंडे इलाकों तक ही सीमित हुआ करती थी। लेकिन अब पॉलीहाउस तकनीक, ड्रिप इरिगेशन, मल्चिंग और ऊंची बेड विधि के इस्तेमाल से मैदानी इलाकों में भी इसकी खेती करना संभव हो गया है। महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में किसानों ने इसकी खेती शुरू कर दी है। पारंपरिक फसलों की तुलना में किसानों को इससे कई अधिक मुनाफा हो रहा है।
स्ट्रॉबेरी की कुछ उन्नत किस्में जैसे ‘कैमेरोसा’, ‘विनस’, ‘विंटर डॉन’ और ‘चैंडलर’ मैदानी इलाकों में काफी सफल रही हैं। इन किस्मों को कम तापमान की आवश्यकता नहीं होती और यह नियंत्रित वातावरण में भी अच्छा उत्पादन प्रदान करने में सक्षम हैं। इसी के साथ खेतों में प्लास्टिक मल्चिंग और ड्रिप सिंचाई प्रणाली से जल संरक्षण के साथ-साथ उत्पादन की गुणवत्ता में भी सुधार आता है। स्ट्रॉबेरी की फसल केवल 3 से 4 महीने में तैयार हो जाती है और प्रति एकड़ लाखों रुपये की आमदनी संभव है।
