अब अरहर की खेती सिर्फ मानसून पर नहीं – ICRISAT की नई किस्म ICPV 25444 से गर्मी में भी होगी भरपूर पैदावार
हैदराबाद। गर्मी में सूखती फसलों के बीच किसानों के लिए राहत की खबर है। ICRISAT (अंतरराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क ट्रॉपिक्स फसल अनुसंधान संस्थान) के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी अरहर (तुअर) की किस्म विकसित की है जो 45 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी सहन कर सकती है और सिर्फ 125 दिनों में तैयार हो जाती है। इस नई किस्म का नाम ICPV 25444 है।
यह अरहर की दुनिया की पहली किस्म है जो इतनी तेज गर्मी में भी न सिर्फ जिंदा रह सकती है, बल्कि अच्छी उपज भी दे सकती है। इसे स्पीड ब्रीडिंग तकनीक से तैयार किया गया है, जिससे नई किस्म को विकसित करने में 15 साल के बजाय सिर्फ 5 साल लगे।

अब अरहर बनेगी ‘ऑल सीजन फसल’
अब तक अरहर की खेती सिर्फ खरीफ (मानसून) सीजन तक सीमित थी क्योंकि यह फसल दिन की लंबाई और तापमान पर निर्भर रहती थी। लेकिन नई किस्म फोटो और थर्मो इंसेंसिटिव है, यानी अब इसे गर्मी में भी उगाया जा सकता है। कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में हुए फील्ड ट्रायल्स में इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 2 टन तक की उपज मिली है।
भारतीय कृषि के लिए क्रांतिकारी बदलाव
ICRISAT के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने कहा,
“यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। अब किसान अरहर को गर्मी में भी उगा सकेंगे, जिससे दालों की कमी दूर करने में मदद मिलेगी और किसानों की आमदनी भी बढ़ेगी।”

स्पीड ब्रीडिंग से मिला तेजी का रास्ता
नई किस्म को विकसित करने के लिए ICRISAT के वैज्ञानिकों ने दुनिया की पहली अरहर स्पीड ब्रीडिंग तकनीक तैयार की। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. प्रकाश गंगशेट्टी के नेतृत्व में बनी इस तकनीक से एक साल में चार पीढ़ियाँ तैयार की गईं। केवल 2,250 वर्गफुट क्षेत्र में 18,000 पौधे उगाए गए। बीज उत्पादन को तेज करने के लिए सीड-चिपिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया।
भारत की दालों की कमी होगी दूर
भारत में हर साल 3.5 मिलियन टन अरहर का उत्पादन होता है, जबकि जरूरत 5 मिलियन टन की होती है। इस अंतर को भरने के लिए हर साल लगभग 800 मिलियन डॉलर (₹6,600 करोड़) की दाल आयात करनी पड़ती है। ICPV 25444 से गर्मियों में खेती संभव होगी, जिससे उपज बढ़ेगी और आयात पर निर्भरता घटेगी।
किसानों की राय
कर्नाटक के बागलकोट में दो किसानों—हनुमंथा मिरजी और बसवराज घांटी—ने गर्मी में इस नई किस्म की खेती की। उन्होंने बताया कि तेज गर्मी और सघन बोवाई के बावजूद फसल अच्छी रही और बीमारियों का कोई असर नहीं दिखा।
किसान गुरुराज कुलकर्णी ने कहा, “फसल 4 महीने में तैयार हो गई, कोई रोग नहीं लगा। अगली बार और ज़्यादा क्षेत्र में इसे उगाऊंगा।”

वैज्ञानिकों की निगरानी में हुई पुष्टि
कर्नाटक राज्य बीज निगम के वैरायटी रिसर्च सेंटर के प्रमुख डॉ. विजय संगम ने फील्ड ट्रायल की निगरानी की और कहा,
“ICPV 25444 गर्मी में अरहर की खेती करने वाले किसानों के लिए वरदान साबित होगी।”
भविष्य की तैयारी: वैश्विक उपयोग के लिए योजना
ICRISAT अब 13,000 अरहर के बीजों के संग्रह से ग्लोबल ट्रेट डाइवर्सिटी पैनल बना रहा है ताकि अन्य देशों के लिए भी गर्मी सहन करने वाली किस्में विकसित की जा सकें। इसकी तैयारी भारत के अलावा एशिया, अफ्रीका, ब्राज़ील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मिलकर हो रही है।
निष्कर्ष:
गर्मी में खेती करने वाले किसानों के लिए ICPV 25444 एक नई उम्मीद है। यह न सिर्फ दाल की कमी को पूरा करेगी, बल्कि किसानों की आमदनी बढ़ाकर ग्रामीण भारत की अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करेगी।
