टीनएज में कई बार बच्चों का बिहेवियर थोड़ा अजीब सा हो जाता है। इस उम्र में कुछ बच्चे चिड़चिड़ाहट, गुस्सा, नखरे आम हो जाते है और इसकी शिकायत हर दूसरे पेरेंट्स करते रहते है। इस उम्र में सही और गलत चीजों को सिखाने में बहुत मेहनत लगती है। आज के समय में हर दूसरा बच्चा टीवी और स्मार्टफोन के मामले में एक्सेस है। ऐसे में बच्चों की बिगड़ती हुई भाषा को कंट्रोल करना और उसे सुधारना पेरेंट्स के लिए और भी मुश्किल हो गया है
आज के समय में ज्यादातर बच्चे स्लैंग, फॉर्म और इमोजी की लेंग्वेज बोल रहे है। इतना ही नहीं कुछ बच्चे पेरेंट्स को उलटे जवाब भी देते है। वही पेरेंट्स बच्चों के इस बर्ताव से काफी ज्यादा परेशान है और बच्चों पर अभी से ध्यान नहीं दिया जाए तो उनके फ्यूचर पर बुरा असर पड़ता है। ऐसे में बच्चों के साथ में कैसे डील करना है, यह बात समझना बेहद जरुरी है।
पेरेंट्स आगे आएं
बच्चे बड़े होने पर सब खुद से ही सीख जाएंगे, ये एटीट्यूड छोड़ दें। जितना टाइम वो आजकल टीवी, मोबाइल को दे रहे हैं, उसके चलते वो बचपन में ही अच्छी और बुरी बातें सीख जा रहे हैं। पेरेंट्स की बातें और सलाह उन्हें पुरानी और बोरियत भरी लगने लगी हैं। ऐसे में पेरेंट्स को बच्चों को उनकी भाषा में समझाना होगा। अगर बच्चा अपमानजनक तरीके से बात करता है, तो उस पर हाथ उठाने या डांटने के बजाय उसे समझाने की कोशिश करे।
पेरेंट्स नहीं बच्चों के दोस्त बनकर रहे
बच्चों का दोस्त बनकर रहने से उन्हें हैंडल करना काफी मुश्किल होता जा रहा है लेकिन ये बिहेवियर इतना भी असरदार नहीं। दोस्त बनाकर भले ही बच्चों को समझाया जा सकता है लेकिन कई बार बच्चे इसका गलत फायदा उठा लेते है और उलटा जवाब देने लगते है। टीनएज में बच्चों का दोस्त बनने से पहले पेरेंट्स बनना जरूरी है। पेरेंट्स बनकर उन्हें अच्छी और बुरी बातों का ज्ञान दें, जिससे वो चीजों को हैंडल करने के तरीके समझें।
बच्चों का मूड स्विंग होने से बचे
बच्चों के ऊपर कोई भी बात थोपें नहीं, उनसे कोई काम करवाना चाहते हैं, तो उसके फायदे बताकर उन्हें उस काम करने के लिए प्रेरित करें। उनसे बात करें, उनका हालचाल जानने की कोशिश करें। अगर वो आपकी अपनी कोई बात नहीं बताना चाहते, तो उनके साथ जबरदस्ती ना करें। उन्हें कुरदने के बजाय खुद बोलने का मौका दें। इससे वो आपसे खुलकर अपनी बात कह पाएंगे।







