हिमाचल प्रदेश से एक बड़ी खबर सामने आई जिसमें मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने राज्य सरकार के कर्मचारियों के बढ़े हुए वेतन को वापस लेने के लिए 6 सितंबर को जारी अधिसूचना को “स्थगित” करने का फैसला लिया है। इसके चलते राजनीतिक सरगर्मी बढ़ी हुई है और राज्य की वित्तीय स्थिति पर सवाल खड़े हो रहे हैं। सुक्खू सरकार ने यह यू-टर्न कर्मचारी संघों और मुख्य विपक्षी दल भाजपा के कड़े विरोध के बीच लिया है।
भाजपा ने सुक्खू सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि इस अधिसूचना से हिमाचल प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य बन गया है, जहाँ सरकार द्वारा कर्मचारियों के वेतन में कटौती की गई है। सुक्खू सरकार ने सोमवार को अधिसूचना पलटते हुए ने कहा कि सरकार अपने कर्मचारियों के हितों की रक्षा हेतु प्रतिबद्ध है और इस तरह की अधिसूचना उचित नहीं है।
हिमाचल प्रदेश ने पार की ऋण की सीमा
यह पहल राज्य के बढ़ते वित्तीय संकट से निपटने हेतु सरकारी खजाने के लिए लगभग 100 करोड़ रुपये बचाने के उद्देश्य से की गई है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की वित्तीय वर्ष 2023-24 की रिपोर्ट, जिसे पिछले महीने राज्य विधानसभा के मानसून सत्र में पेश किया गया, उसके अनुसार हिमाचल प्रदेश का कुल ऋण और देनदारियाँ 95,633 करोड़ रुपये थीं। राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम के तहत प्रदेश की ऋण सीमा 90,000 करोड़ रुपये से अधिक नहीं होनी चाहिए।
2023-24 के लिए राज्य की वार्षिक उधारी सीमा 6,342 करोड़ रुपये थी, लेकिन आखिर में राज्य द्वारा 9,043 करोड़ रुपये उधार लिए गए। इसका एक बड़ा हिस्सा 2024 तक 74.11% के मौजूदा ऋणों के भुगतान हेतु इस्तेमाल किया गया। वहीं 2019 में केवल 52.99% ऋण का इस्तेमाल ऐसे भुगतानों के लिए किया गया। सुक्खू सरकार द्वारा पिछले कुछ वर्षों में राज्य के वित्तीय संकट से निपटने हेतु उठाए गए कदम
उल्टे पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
