नई दिल्ली — केंद्र सरकार का राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF), जो 25 नवंबर 2024 से शुरू हुआ था, ने आठ महीने में अहम उपलब्धियां हासिल की हैं। अब तक 10 लाख से ज्यादा किसान जुड़े, 2,045 बायो-इनपुट सेंटर शुरू हुए, 70,021 कृषि सखियां प्रशिक्षित हुईं और 1,100 मॉडल फार्म विकसित किए गए। ₹2,481 करोड़ की इस योजना का लक्ष्य है 7.5 लाख हेक्टेयर में प्राकृतिक खेती, 15,000 क्लस्टर, और 1 करोड़ किसानों को जागरूक करना। किसानों को ₹4,000 प्रति एकड़ प्रति वर्ष की प्रोत्साहन राशि और राष्ट्रीय ब्रांडिंग का लाभ मिलेगा।
राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) अब भारतीय कृषि में बदलाव की नई पटकथा लिख रहा है। ₹2,481 करोड़ के बजट (केंद्र ₹1,584 करोड़, राज्य ₹897 करोड़) वाले इस मिशन का लक्ष्य है — 7.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में 15,000 क्लस्टरों के जरिए प्राकृतिक खेती, 10,000 बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर और 1 करोड़ किसानों को जागरूक करना।
सिर्फ आठ महीनों में ही इस योजना से 10 लाख से अधिक किसान जुड़ चुके हैं। देशभर में 7,934 बायो-इनपुट रिसोर्स सेंटर चिन्हित हो चुके हैं, जिनमें से 2,045 सेंटर चालू हैं। गांव-गांव में किसानों का मार्गदर्शन करने के लिए 70,021 कृषि सखियां तैयार की गई हैं, जबकि 3,900 वैज्ञानिक, किसान मास्टर ट्रेनर और सरकारी अधिकारी प्राकृतिक खेती की तकनीक में प्रशिक्षित किए गए हैं। मिशन के तहत 28,000 सामुदायिक संसाधन व्यक्ति (CRP) की पहचान हो चुकी है।
किसानों के प्रशिक्षण के लिए 1,100 मॉडल फार्म तैयार किए गए हैं, जहां उन्हें बीजामृत, जीवामृत, भूमि तैयारी और कीट-रोग प्रबंधन जैसे व्यावहारिक तरीके सिखाए जा रहे हैं। 806 प्रशिक्षण संस्थान, जिनमें कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय और स्थानीय संस्थान शामिल हैं, मिशन में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
किसानों को इस योजना के तहत ₹4,000 प्रति एकड़ प्रति वर्ष (अधिकतम एक एकड़) के हिसाब से दो साल तक प्रोत्साहन राशि मिल रही है। साथ ही, एक सरल प्रमाणन प्रणाली और राष्ट्रीय ब्रांडिंग से उनके उत्पादों को बेहतर बाज़ार मूल्य मिलने की संभावना है।
गुजरात के किसान रामलाल चौधरी का कहना है, “पहले हर फसल में रासायनिक खाद और कीटनाशक पर हजारों रुपये खर्च होते थे, अब जीवामृत और गोबर से खेती कर रहा हूँ तो लागत आधी हो गई है और मिट्टी भी ज़्यादा उपजाऊ लग रही है।”
वहीं, आंध्र प्रदेश की महिला किसान अम्मा लक्ष्मी कहती हैं, “प्राकृतिक खेती से न सिर्फ खर्च कम हुआ है, बल्कि सब्जियों और अनाज का स्वाद भी पहले से बेहतर है, खरीदार खुद गाँव तक आ रहे हैं।”
वहीं हिमाचल प्रदेश के किसान सुरेश ठाकुर ने प्राकृतिक खेती से रंगीन बेल पेपर उगाकर सालाना 18 लाख रुपये कमाए। उनकी फसल की गुणवत्ता इतनी बेहतरीन है कि उसका एक हिस्सा विदेशों में भी निर्यात होता है। सुरेश कहते हैं, “मैंने रसायन पूरी तरह छोड़ दिए हैं, अब मेरी सब्ज़ी का रंग, स्वाद और कीमत — तीनों पहले से कहीं बेहतर हैं।”
विशेषज्ञों का कहना है कि इतने कम समय में मिली यह उपलब्धियां इस बात का संकेत हैं कि पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के संगम से भारत की मिट्टी की सेहत सुधरेगी, जैव विविधता बढ़ेगी और किसानों की आय में स्थायी सुधार संभव होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि इतने कम समय में मिली यह उपलब्धियां इस बात का संकेत हैं कि पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के संगम से भारत की मिट्टी की सेहत सुधरेगी, जैव विविधता बढ़ेगी और किसानों की आय में स्थायी सुधार संभव होगा।
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