पिछले कुछ सालों से मौसम में हो रहे बदलावों की वजह फसलों को भारी नुकसान हो रहा है वही खासतौर से सेब के किसानों को काफी ज्यादा नुकसान हो रहा है। इसके बावजूद भी हिमचाल सरकार द्वारा चलाई जा रही है मौसम आधारित फसल बीमा योजना को अपनाने में किसान खास रुचि नहीं दिखा रहे है वही राज्य के करीब 2.5 लाख फलों के किसानों में से सिर्फ 66,000 किसानों ने पिछले वित्तीय वर्ष में इस योजना का लाभ उठा सके है। वही राजस्व और बागवानी मंत्री जगत सिंह नेगी का कहना है, बेहद कम किसान ही इस योजना का लाभ ले सके है। किसानों को इस योजना का लाभ जरूर लेना चाहिए।
क्या है फसल बीमा योजना ?
बीमा योजना से जुड़े एक अधिकारी का मानना है कि किसानों में इस योजना को लेकर जागरूकता की कमी है, “जैसे-जैसे किसानों को इसके फायदे पता चलेंगे, वैसे-वैसे उनकी भागीदारी बढ़ेगी।
किसानों की अपनी शिकायतें
बीमा कंपनियां किसी क्षेत्र के मौसम डेटा के आधार पर फसल के नुकसान का आकलन करती है वही हर एक किसान को अलग अलग स्तर पर नुकसान उठाना होता है वही फिल्ड विजिट के बिना सही नुकसान का अंदाजा लगाना मुश्किल है वही किसानों का कहना है कि मौसम मापने के लिए पर्याप्त स्टेशन और उपकरण नहीं हैं। वही फल, सब्ज़ी और फूल उत्पादक संघ के अध्यक्ष हरीश चौहान ने कहा, “किसानों को मौसम डेटा की सटीकता पर भरोसा नहीं है क्योंकि पर्याप्त वेदर स्टेशन मौजूद नहीं हैं।”
क्वालिटी का नुकसान नहीं होता कवर
हिमालयन सोसाइटी फॉर हॉर्टिकल्चर एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट की अध्यक्ष डिंपल पंजटा ने बताया, “ओलों से सेब की क्वालिटी खराब हो जाती है, और उन्हें बी-ग्रेड में बेचना पड़ता है। इससे दाम काफी गिर जाते हैं, लेकिन बीमा योजना सिर्फ मात्रा के नुकसान को कवर करती है, वही क्वालिटी के नुकसान को नहीं।” कई किसानों का मानना है कि यह योजना बीमा कंपनियों के लिए ज्यादा फायदेमंद है। वही कई बार किसानों को उतनी ही राशि क्लेम में मिलती है जितना उन्होंने प्रीमियम दिया होता है। जबकि उत्तराखंड में यही योजना किसानों को 3-4 लाख तक का मुआवजा देती है। वहीं बागवानी विभाग का दावा है कि हिमाचल के कुछ इलाकों, जैसे किन्नौर में किसानों को 4 लाख तक का क्लेम भी मिला है।
सरकार की इस कमी पर उठ रहा है सवाल
एनजीओ चलाने वाले मोहन शर्मा ने बताया, “2014-15 में आरटीआई से पता चला था कि एक क्लस्टर में इस योजना के लिए 1.62 करोड़ रुपये काटे गए, लेकिन क्लेम सिर्फ 20 लाख रुपये के ही दिए गए। जब अगली बार जानकारी मांगी, तो देने से इनकार कर दिया गय। “
