देशभर में पराली जलाने की समस्या ने न केवल वायु प्रदूषण को बढ़ाया है बल्कि इससे कृषि की उर्वरा शक्ति पर गहरा असर पड़ता है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉ. एसके चौधरी ने हाल ही में एक खुलासा किया है कि एक एकड़ में पराली जलाने से 12.5 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 30 किलोग्राम पोटैशियम का नुकसान होता है। यह तीनो पोषक तत्व खेती के लिए अत्यंत आवश्यक हैं और इनका नुकसान कृषि उत्पादकता को सीधे असर डालता है।
इस समस्या का हल केवल एक या दो उपायों से नहीं निकला जा सकता है। इसके लिए आपको पराली से जुड़ी समस्या का समाधान मिटटी से ही निकल सकता है इसके लिए आपको बायो डिकंपोजर, मशीनों, और इंडस्ट्रियल इस्तेमाल को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता है। वही बायो डिकंपोजर का असर कम से कम 28 दिन में होता है, जिससे पराली को पूरी तरह से नष्ट करने के लिए समय की जरूर है। ऐसे में पराली प्रबंधन में संयोजित दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है।
स्वायल ऑर्गेनिक कार्बन (SOC) का संकट
मिट्टी का ऑर्गेनिक कार्बन, जो खेती की उर्वरता के लिए काफी जरूरी है पिछले कुछ दशक में काफी कम हो गया है। वही इसे इंडो-गंगेटिक प्लेन में, जहां धान और गेहूं की प्रमुख फसलें होती हैं, वहां SOC का स्तर 1960 के दशक की तुलना में बेहद कम हो चुका है। यह कमी मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की संख्या में कमी के कारण हो रही है जिससे खेती की उत्पादन क्षमता में गिरावट दर्ज की गयी है इस वजह से किसानों को रासयनिक उर्वरकों का अधिक प्रयोग करना पड़ सकता है जिससे लागत है, और उत्पादन में कमी देखी गयी है।
किसानों के सामने चुनौतियां
उर्वरकों का इस्तेमाल संतुलित होना चाहिए, और किसानों को सूक्ष्म पोषक तत्वों का भी ध्यान रखना जरूरी है। इसके साथ ही, यह भी महत्वपूर्ण है कि हम भविष्य के लिए ऐसी मिट्टी छोड़ें जो आने वाली पीढ़ियों के लिए उपजाऊ हो। इसके लिए नेचर पॉजिटिव एग्रीकल्चर को बढ़ावा देना आवश्यक है। पिछले पांच वर्षों से 16 राज्यों में प्राकृतिक खेती पर शोध चल रहा है, जो आने वाले वर्षों में एक नई दिशा दे सकता है।
मिट्टी की देखभाल
न केवल मिट्टी का स्वास्थ्य ही फसल उत्पादन तक सिमित नहीं है बल्कि मिट्टी से स्वस्थ पौधे उगाए जा सकते है स्वस्थ पौधों से स्वस्थ जानवर और अंततः स्वस्थ इंसान दोनों निर्भर करते है। इस बात को समझते हुए अब हमें मिट्टी की देखभाल करने की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
मिट्टी की स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर जलाने की समस्या, SOC की कमी और मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिए हमें समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा। इस दिशा में बायो डिकंपोजर, मशीनों, और अन्य उपायों का संयोजन जरूरी है। इससे केवल किसानों के ऊपर कार्रवाई करने से नहीं, बल्कि इनके समाधान के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण, तकनीकी उपाय और सामुदायिक जागरूकता की आवश्यकता है।