भगवान श्रीकृष्ण को छप्पन भोग लगाने की प्रथा लम्बे समय से चलती आ रही है। 56 भोग का महत्व लम्बे समय से चला आ रहा है लेकिन यह धार्मिक लिहाज से बेहद खास माना जाता है। बदलते हुए समय के साथ में स्थानीय लोग व्यंजनों के हिसाब से थाली तैयार करते है, जो भारतीय लोगों के अगाध प्रेम और सौंदर्य का प्रतीक है। ऐसे ही भगवान कृष्ण के प्रेम को ध्यान में रखते हुए 56 भोग की थाली तैयार की जाती है जिसमें मीठे, नमकीन और खट्टे से लेकर तीखे, कसैले और कड़वे व्यंजन भी तो शामिल होते है तो चलिए जान लेते है। इसे तैयार करने की विधि के बारे में जान लेते है।
कैसे हुई थी ‘छप्पन भोग’ की शुरुआत
ब्रज के लोग स्वर्ग के राजा इंद्र को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष तरह के आयोजन में जुटे थे। तब नन्हें कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि ये ब्रजवासी कैसा आयोजन कर रहे है ? तब नन्द बाबा ने कहा था कि इस पूजा से देवराज इंद्र प्रसन्न होंगे और उत्तम वर्षा करेंगे। इसपर बाल कृष्ण ने कहा, कि वर्षा करना तो इंद्र का काम है, तो आखिर इसमें पूजा की क्या जरूरत है? अगर पूजा करनी ही है, तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए जिससे लोगों को ढेरों फल-सब्जियां प्राप्त होती हैं और जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था होती है। ऐसे में, कृष्ण की ये बातें ब्रजवासियों को खूब पसंद आई और वे इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।
56 भोग में कौन-से व्यंजन होते हैं शामिल?
छप्पन भोग में चढ़ाए जाने वाले व्यंजनों में पंजीरी, माखन-मिश्री, खीर,रसगुल्ला, जलेबी, रबड़ी, जीरा-लड्डू, मालपुआ, मोहनभोग, मूंग दाल हलवा, घेवर, पेड़ा, काजू-बादाम बर्फी, पिस्ता बर्फी, पंचामृत, गोघृत, शक्कर पारा, मठरी, चटनी, मुरब्बा, आम, केला, अंगूर, सेब, आलूबुखारा, किशमिश, पकौड़े, साग, दही, चावल, कढ़ी, चीला, पापड़, खिचड़ी, बैंगन की सब्जी, दूधी की सब्जी, पूड़ी, टिक्की, दलिया, देसी घी, शहद, सफेद-मक्खन, ताजी क्रीम, कचौरी, रोटी, नारियल पानी, बादाम का दूध, छाछ, शिकंजी, चना, मीठे चावल, भुजिया, सुपारी, सौंफ, पान और मेवा आदि शामिल है।
