इस सीज़न प्रालि जलाने के मामलों में 75 फीसदी से भी अधिक कमी दर्ज की गयी है जबकि दिल्ली NCR के वायु प्रदूषण में पराली के धुंए की हिस्सेदारी 5 फीसदी से कमी हो गयी है। इसके साथ दिल्ली में शनिवार सुबह 8 बजे वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) 351 पर पहुंच गया, जिससे वायु गुणवत्ता में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गयी है इसके साथ ही प्रदूषण का यह स्तर शहर के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है इससे निवासियों और अधिकारियो के बीच चिंता बढ़ गयी है। दिल्ली में शनिवार की सुबह एक बार फिर एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 350 के पार पहुंच गया, जो गंभीर स्थिति को दर्शाता है। सुबह 8 बजे दिल्ली का 24 घंटे का औसत AQI 351 रिकॉर्ड किया गया, जो साफ दर्शाता है कि प्रदूषण स्तर अब भी चिंताजनक है।
दिल्ली के प्रदूषण में पराली की हिस्सेदारी कम
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटरोलॉजी पुणे के अनुसार पराली जलाने का योगदान अब दिल्ली के प्रदूषण में 5 फीसदी से भी कम हो गया है। इसके साथ ही इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट के डेटा से पता चलता है कि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुकी हैं।
हवा के लिए दिल्ली खुद जिम्मेदार
अगर पराली जलाना मुख्य दोषी नहीं है, तो दिल्ली की हवा अभी भी साफ क्यों नहीं है? इसका जवाब शहर के भीतर ही है और इसके कई फैक्टर जिम्मेदार हैं। दिल्ली के भीतर पैदा होने वाले प्रदूषक तत्व, विशेष रूप से वाहनों से निकलने वाला धुआं, दिल्ली के कुल प्रदूषण में 25% से अधिक का योगदान देता है। इसके अलावा, मौसम की स्थितियां भी अनुकूल नहीं हैं। पिछले कुछ दिनों में हवा की गति थोड़ी बढ़ी थी, जिससे वायु गुणवत्ता में थोड़ा सुधार आया था।
सोमवार को प्रदूषण घटने का अनुमान
शनिवार से सोमवार तक हवा की गति धीमी रहेगी, जिससे प्रदूषण के कम होने की संभावना भी कम है। इसके अलावा, दो प्रमुख कारक मिक्सिंग हाइट और वेंटीलेशन इंडेक्स भी काफी कम रहने का अनुमान है, जिससे प्रदूषण वायुमंडल में ऊपर जाने के बजाय जमीन के स्तर पर बना रहेगा।
एनजीटी ने बताया 70 फीसदी मामले में आई कमी
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट के मुताबिक पंजाब में पराली जलाने की घटनाओ में 70 फीसदी की कमी आई है। वही NGT ने पहले राज्य के अधिकारियों में पराली जलाने के कारण NCR में होने प्रदूषण के मुद्दे पर नियमित रिपोर्ट मांगी थी। वही कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के निदेशक की ओर से 26 नवंबर को रिपोर्ट दाखिल की गई, जिसमें कहा गया कि पंजाब राज्य के प्रयासों के नतीजे में धान की पराली जलाने की घटनाओं की संख्या 25 नवंबर 2023 को 36,551 से घटकर 25 नवंबर 2024 को 10479 हो गई है, जो 70 फीसदी की कमी है।
