दिल्ली / सूरत : सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति के पुनर्जागरण का संकल्प लिए महासंगम यात्रा जब गुजरात में प्रविष्ट हुई, तो यहां के पवित्र स्थलों की दिव्यता से इसका स्वागत हुआ। इस आध्यात्मिक यात्रा के तहत भक्तों ने सूर्यपुत्री तापी माता के तट पर विशेष पूजन और आरती का लाभ लिया। साथ ही, नर्मदा नदी स्थित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर में विशेष दर्शन एवं अनुष्ठान संपन्न किए गए। इस यात्रा का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय मंदिर प्रबंधक परिषद(IMPC) एवं भगवा ऐप के माध्यम से किया जा रहा है । यात्रा में लगभग 80 भक्त सफ़र कर रहें है ।
सूर्यपुत्री तापी माता: दानवीर कर्ण की पुण्य भूमि ।
यात्रा में साथ चल रहें अंतर्राष्ट्रीय मंदिर प्रबंधक परिषद(IMPC) के राष्ट्रिय महामंत्री एवं AVPL International के चेयरमेन श्री दीप सिहाग सिसाय ने बताया भारत में तापी नदी को सनातन परंपरा में विशेष स्थान प्राप्त है। इसे सूर्यदेव की पुत्री माना जाता है और इसकी महिमा गंगा एवं नर्मदा जैसी पवित्र नदियों के समान मानी गई है। सूरत को दानवीर कर्ण की भूमि भी कहा जाता है, क्योंकि यही वह स्थान है जहां कर्ण ने अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति और स्वर्ण दान किया था। महासंगम यात्रा के संतों और श्रद्धालुओं ने यहां सामूहिक रूप से तापी आरती में भाग लिया, जो गंगा आरती की ही भांति एक दिव्य अनुभव प्रदान करती है। आपको बता दें ताप्ती नदी का भारत की नदियों में एक उच्च स्थान माना जाता है, ताप्ती को तापी नदी भी कहा जाता है, यह भारत के मध्य भाग में बहने वाली एक नदी है, जो नर्मदा नदी से दक्षिण में बहती है। प्रायद्वीप भारत में केवल नर्मदा, ताप्ती और मही नदी ही मुख्य नदियाँ हैं जो पूर्व से पश्चिम बहती हैं।
नर्मदेश्वर महादेव: नर्मदा का दिव्य वरदान
महासंगम यात्रा के अगले पड़ाव में नर्मदा नदी स्थित नर्मदेश्वर महादेव मंदिर के दर्शन किए गए। नर्मदा के जल से उत्पन्न नर्मदेश्वर शिवलिंग को अत्यंत पवित्र और सिद्ध शिवलिंग माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नर्मदा नदी से प्राप्त प्रत्येक शिवलिंग स्वयं सिद्ध होता है और इसे घर या मंदिर में स्थापित करने के लिए किसी विशेष प्राण प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं होती।
नर्मदेश्वर शिवलिंग की आध्यात्मिक महिमा:
- इसे स्वयंभू शिवलिंग माना जाता है, जो स्वयं अपनी शक्ति से प्रतिष्ठित होता है।
- इस शिवलिंग की उपासना करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती है।
- नर्मदेश्वर महादेव की आराधना करने से परिवार में मंगलकारक ऊर्जा का संचार होता है।
- मान्यता है कि इसकी पूजा करने से स्थिर लक्ष्मी प्राप्त होती है और समस्त सांसारिक भय समाप्त होते हैं।
- नर्मदेश्वर शिवलिंग की जलाभिषेक पूजा में बेलपत्र को अर्पित करना विशेष शुभ माना जाता है।
सनातन संस्कृति की धरोहर को जागृत करने का संकल्प
महासंगम यात्रा का यह पड़ाव सनातन संस्कृति और भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर सिद्ध हुआ। तापी आरती और नर्मदेश्वर महादेव के दर्शन ने भक्तों को सनातन धर्म की वैज्ञानिकता और आध्यात्मिक शक्ति का अनुभव कराया। इस यात्रा का उद्देश्य केवल धार्मिक आस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज को अपनी जड़ों से जोड़ने का एक महासंकल्प है।
अब यह यात्रा सूरत से आगे बढ़ते हुए सोमनाथ ज्योतिर्लिंग और द्वारकाधीश मंदिर पहुंचेगी, जहां विशेष अनुष्ठान किए जाएंगे। इसके पश्चात अहमदाबाद में महासंगम यात्रा के भव्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे।
महासंगम यात्रा – सनातन संस्कृति की पुनर्स्थापना का संकल्प
महासंगम यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति को पुनर्स्थापित करने का एक दिव्य संकल्प है। यह यात्रा देशभर के प्रमुख तीर्थ स्थलों से गुजरते हुए भक्तों को जोड़ रही है और यह संदेश दे रही है कि सनातन धर्म केवल मंदिरों तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में मौजूद है।
इस यात्रा के साथ भगवा ऐप भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जो आध्यात्मिक और धार्मिक समुदाय को डिजिटल युग में एक मंच प्रदान कर रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय मंदिर प्रबंधक परिषद (IMPC) इस मिशन के तहत मंदिरों के पुनर्निर्माण, धरोहर संरक्षण और सामाजिक उत्थान के लिए कार्य कर रहा है। IMPC का लक्ष्य मंदिरों को न केवल धार्मिक स्थलों के रूप में बल्कि समृद्ध सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में विकसित करना है, जिससे समाज में एकता, पर्यावरणीय स्थिरता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिल सके.
