God Shiva: हाल ही में श्रावण का महीना खत्म हुआ है। हिंदू धर्म के अनुसार ऐसा बताया गया है कि यह सावन का महीना शंकर भगवान को बहुत प्रिय है। श्रावण के महीने में छोटे से लेकर बड़े बुजुर्ग सभी शंकर भगवान का जल अभिषेक किया करते हैं। लेकिन देखा जाए तो सिर्फ श्रावण के महीने में ही नहीं बल्कि आप जब भी चाहे तब शंकर भगवान को जलाभिषेक कर सकते हैं।

श्रावण के महीने में जलाभिषेक करने के लिए मंदिरों में काफी लंबी कतारें होती है। लेकिन आप सभी भक्तों ने कभी यह सोचा है कि सिर्फ शंकर भगवान को ही जल अभिषेक क्यों किया जाता है किसी और देवता को क्यों नहीं? कुछ पौराणिक कथाओं में इस प्रश्न का जवाब दिया गया है और तो और सावन के महीने में जल अभिषेक करने का एक खास महत्व भी होता है। इस खास महत्व के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं।
God Shiva: शिवजी को प्रिय है सावन का महीना
यह तो हम सभी जानते हैं कि माता पार्वती ने शंकर भगवान को अपना पति बनाने के लिए कड़ी से कड़ी तपस्या की थी। उनकी कड़ी तपस्या को देख कर श्रावण महीने में शिव जी प्रसन्न हुए और माता पार्वती से विवाह कर लिया। माता पार्वती और शंकर भगवान की शादी सावन के महीने में ही हुई थी। इसलिए लोग सावन के महीने में शिव जी और माता पार्वती की पूजा किया करते हैं। शिवजी का सावन के महीने में ही माता पार्वती से मिलन हुआ था। इसलिए शिवजी को सावन का महीना अत्यंत प्रिय बताया जाता है।
God Shiva: शिव जी का ससुराल में हुआ था जोरदार स्वागत
शिव पार्वती की कहानी में ऐसा बताया गया है कि सावन के महीने में ही शिवजी पहली बार अपने ससुराल गए थे। ससुराल में जाते ही शंकर भगवान का जोरों शोरों से स्वागत किया गया। जिससे शंकर भगवान काफी प्रसन्न हो गए थे। शंकर भगवान जब अपने ससुराल पहुंचे तो उनके स्वागत में उनका जलाभिषेक किया गया जिससे शंकर भगवान अत्यंत प्रसन्न हो गए थे। ऐसा बताया जाता है कि श्रावण के महीने में शंकर भगवान और उनकी पत्नी माता पार्वती दोनों पृथ्वी पर निवास किया करते हैं, इस बात का उल्लेख शिव पुराण में भी किया गया है। इसी कारण से सावन के महीने में सभी भक्तजन माता पार्वती और शंकर भगवान की पूजा करते हैं।

God Shiva: सावन में शिव जी के जलाभिषेक की पौराणिक कथा
शिव पुराण में ऐसा लिखा गया है कि सावन के महीने में ही समुंद्र मंथन हुआ था। यह तो हम सभी जानते हैं कि जब समुंद्र मंथन हुआ तो सबसे पहले उस समुंदर में से विष निकला था। इस विष को देखकर सभी देवता और राक्षसों में कोहराम मच गया था। जब समुद्र मंथन में से विष निकला तो देवता गण और राक्षसों के बीच हाहाकार मच गया कि अब इस विष का क्या किया जाए और इस संकट से कैसे बचा जाए? सभी और मच रहे हो कोहराम को देखकर शिव जी ने पूरी सृष्टि को बचाने के लिए खुद ही इस विष को पी लिया।

यह तो हम सभी जानते हैं कि पूरी दुनिया को बचाने के लिए शिवजी ने विष को पी लिया, जिस वजह से उनका गला नीला पड़ने लग गया। शिवजी द्वारा लिए गए इस निर्णय के कारण ही शिवजी को नीलकंठ नाम से भी संबोधित किया जाता है। शिव पुराण में ऐसा लिखा गया है कि शिव जी द्वारा किए गए विष का प्रभाव इतना ज्यादा था कि उसे शांत करने के लिए सभी देवता गणों ने शिवजी को जल अभिषेक किया ताकि उन्हें राहत मिल सके। देवता द्वारा किए गए जलाभिषेक से शिवजी इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने सभी देवताओं को मनचाहा वरदान दे दिया। इसीलिए सावन के महीने में सभी लोग शिवजी को जल अभिषेक करते हैँ।
God Shiva: वैज्ञानिक कारण
कुछ वैज्ञानिकों द्वारा ऐसा कहा गया है कि ज्योत्रिलिंगो पर सबसे ज्यादा रेडिएशन पाया जाता है। यहां तक कि यह भी कहा गया है कि शिवलिंग में न्यूक्लियर रिएक्टर की तरह रेडियोएक्टिव एनर्जी पाई जाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रलय जैसी आपदाओं से बचने के लिए बार-बार शिवलिंग पर जलाभिषेक किया जाता है। यहां तक कि वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल समुद्र में मिलकर एक दवाई की तरह कार्य करता है।


11 Responses
Mahaliah Ardanaz
Morireoluwa Tvinde
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